रात का समय। एक सुनसान सड़क। वेदा और श्याम एक भारी ट्रक में सवार हैं। वेदा ट्रक चला रहा है, जबकि श्याम बगल की सीट पर बैठा है। सड़क पर सन्नाटा है, और ठंडी हवा कानों में सनसनाती है।
“ए वेदा, थोड़ा धीरे चला यार! इतनी जल्दी क्या है?” श्याम चिल्लाता है, जब ट्रक एक तीखे मोड़ पर तेजी से मुड़ता है।
“अरे, सुबह तक माल डिलीवर करना है। चुप बैठ!” वेदा जवाब देता है। उसकी आँखें सड़क पर टिकी हैं, लेकिन उसका चेहरा थका हुआ और अजीब सा लग रहा है।
“यार, तू ये टॉनिक पीना बंद कर। ये तेरा भूत जैसा चेहरा देख!” श्याम मजाक करता है, लेकिन उसकी हंसी में एक अजीब सी घबराहट है।
“चल, एक पैग और बना,” वेदा हंसते हुए कहता है।
तभी सड़क पर एक बोर्ड नजर आता है: “धीरे चलें, फ्लाई ओवर आगे है।”
वेदा उसे अनदेखा कर देता है। ट्रक तेजी से फ्लाई ओवर पर चढ़ता है। अचानक, सामने से एक तेज रोशनी चमकती है। श्याम चिल्लाता है, “ए वेदा, धीरे!” लेकिन वेदा का चेहरा पत्थर की तरह सख्त हो जाता है। ट्रक अनियंत्रित होकर फ्लाई ओवर से नीचे गिर जाता है। एक भयानक धमाका… और फिर सन्नाटा।
विजय का ऑफिस, अगली सुबह
कॉन्ट्रैक्टर विजय अपने ऑफिस में बैठा है। उसका सहायक रवि दौड़ता हुआ आता है।
“सर, सुना आपने? रतनपुर फ्लाई ओवर पर फिर से एक्सीडेंट हो गया! ये 20वां हादसा है!”
विजय का चेहरा तन जाता है। “फिर से? ये क्या हो रहा है वहां? लोग पीकर गाड़ी चलाते हैं, इसलिए मरते हैं!”
“नहीं सर, लोग कह रहे हैं कि वो फ्लाई ओवर भूतिया है। वहां से 100 मीटर दूर एक कब्रिस्तान भी है,” रवि धीरे से कहता है।
“भूत-वूत कुछ नहीं होता, रवि! मैं एक टीम भेजता हूं। तू चाय ला,” विजय गुस्से में कहता है।
लेकिन विजय के दिमाग में एक पुरानी बात कौंधती है। जब फ्लाई ओवर बन रहा था, तब एक बूढ़ा आदमी आया था। उसने चेतावनी दी थी, “ये जगह छेड़ना ठीक नहीं। यहाँ सो रही आत्माओं को जगाओगे, तो बहुत खून बहेगा।” विजय ने उसे पागल समझकर भगा दिया था। लेकिन अब… क्या वो बूढ़ा सही था?
रात का सन्नाटा और संजीव की गाड़ी
संजीव अपनी पत्नी और साली के साथ कार में है। रात गहरी हो चुकी है। वो यू-टर्न लेकर उसी फ्लाई ओवर की सड़क पर आ जाता है।
“ये रास्ता छोटा है, जल्दी घर पहुंच जाएंगे,” संजीव कहता है।
तभी एक तेज हॉर्न की आवाज आती है। एक ट्रक उनकी गाड़ी को ओवरटेक करता है।
“पागल है ये ड्राइवर!” संजीव गुस्से में कहता है। वो गाड़ी साइड में रोकता है। “रुक, टायर चेक करता हूं।”
संजीव बाहर निकलता है। टायर ठीक हैं, लेकिन उसे एक अजीब सी ठंड महसूस होती है। झाड़ियों के पास वो एक बच्चे को देखता है, जो उसे घूर रहा है। बच्चे की आँखें खाली और डरावनी हैं। संजीव की सांस अटक जाती है। “इतनी रात में ये बच्चा?” वो जल्दी से गाड़ी में बैठता है।
गाड़ी फिर चल पड़ती है। फ्लाई ओवर पर चढ़ते ही संजीव को पीछे की सीट पर वही बच्चा दिखता है, जो उसकी पत्नी और साली के बीच बैठा है। संजीव की चीख निकल जाती है। गाड़ी अनियंत्रित होकर फ्लाई ओवर से नीचे गिर जाती है।
विजय का सामना सच्चाई से
विजय को अपने सीनियर से डांट पड़ती है। “21 एक्सीडेंट, 80 मौतें! विजय, तूने उस फ्लाई ओवर को बनवाया था। अब तू ही बता, वहां क्या हो रहा है?”
विजय जवाब देता है, “सर, मैंने रोड चेक की। कोई कमी नहीं है। डिवाइडर, सड़क, सब ठीक है।”
“तो फिर हर हादसा उसी फ्लाई ओवर पर क्यों?” सीनियर गुस्से में पूछता है। “लोग कह रहे हैं वहां भूत हैं। और वो कब्रिस्तान?”
विजय चुप रहता है, लेकिन उसका मन अशांत है।
उसी रात, विजय फ्लाई ओवर पर जाता है। वो अपनी गाड़ी में बैठकर निगरानी करता है। अचानक, उसे एक बूढ़ा आदमी झाड़ू लगाते दिखता है।
“बाबा, इतनी रात में झाड़ू क्यों?” विजय पूछता है।
बूढ़ा हंसता है, “रात में लोग आते हैं, पर दिखते नहीं। तेरा फ्लाई ओवर अब भूतों का घर बन चुका है।”
विजय गुस्से में कहता है, “मैं भूतों पर यकीन नहीं करता!”
बूढ़ा गायब हो जाता है। विजय अपनी गाड़ी की तरफ जाता है, लेकिन गाड़ी में वही बूढ़ा बैठा दिखता है। वो दौड़कर गाड़ी तक पहुंचता है, पर कोई नहीं होता।
तीन दोस्तों की आखिरी रात
तीन दोस्त—कपिल, प्रतीक और विमल—वायरल वीडियो बनाने के चक्कर में उसी फ्लाई ओवर पर आते हैं।
“यार, ये जगह डरावनी है,” विमल घबराते हुए कहता है।
“अरे, डरने की क्या बात? भूत-वूत कुछ नहीं होता!” कपिल हंसता है।
गाड़ी यू-टर्न लेती है। सड़क पर एक काली बिल्ली दिखती है, जो अचानक गायब हो जाती है। प्रतीक को ठंडी हवा में कुछ अजीब सा महसूस होता है। वो गाड़ी रोककर बाहर निकलता है। पास की दीवार पर वो सुसु करता है, बेखबर कि वो दीवार कब्रिस्तान से सटी है।
अचानक, उसके कंधे पर एक ठंडा, खूनी हाथ रखा जाता है। प्रतीक मुड़ता है, लेकिन कोई नहीं होता। गाड़ी में बैठते ही उसे अपने कंधे पर खून का निशान दिखता है। डर के मारे उसकी सांसें रुकने लगती हैं।
कपिल गाड़ी तेजी से फ्लाई ओवर पर चढ़ाता है। तभी गाड़ी के शीशे पर एक खूनी हाथ का निशान उभरता है। कपिल की चीख निकलती है, और गाड़ी फ्लाई ओवर से नीचे गिर जाती है। कपिल और प्रतीक की मौके पर ही मौत हो जाती है। विमल जख्मी हालत में बाहर निकलता है, चिल्लाता हुआ, “मैंने कहा था, यहां मत आओ! कोई जिंदा नहीं बचता!”
विजय का सपना और आखिरी कोशिश
विजय को रात में एक सपना आता है, जिसमें वो तीन दोस्तों का एक्सीडेंट देखता है। वो रवि को फोन करता है, “रवि, मेरा सपना सच हो सकता है। हमें फ्लाई ओवर पर जाना होगा। किसी की जान बचानी है!”
रवि हंसता है, “सपना ही तो है, सर!”
“नहीं, मेरा दिल कह रहा है, कुछ गलत होने वाला है। चल मेरे साथ!”
विजय फ्लाई ओवर की ओर भागता है। रास्ते में उसे वही बूढ़ा दिखता है। “तूने ये फ्लाई ओवर बनाया। अब देख, कितनी जानें गईं। और अभी और जाएंगी!” बूढ़ा गायब हो जाता है।
विजय गाड़ी तेज करता है। फ्लाई ओवर पर पहुंचते ही उसे वो तीन दोस्तों की गाड़ी दिखती है। वो बचाने की कोशिश करता है, लेकिन अचानक उसकी गाड़ी अनियंत्रित हो जाती है। एक भयानक टक्कर… और जब विजय को होश आता है, वो देखता है कि उसकी गाड़ी और तीन दोस्तों की गाड़ी दोनों दुर्घटनाग्रस्त हैं।
अंत
अगले दिन, फ्लाई ओवर पर एक बोर्ड लग जाता है: “हॉन्टेड फ्लाई ओवर।”
विजय, जिसने ये फ्लाई ओवर बनाया था, उसी में हुए एक हादसे में मर जाता है। लोग कहते हैं कि कब्रिस्तान की आत्माएं कभी शांत नहीं हुईं। और जो भी उस फ्लाई ओवर से गुजरता है, वो कभी जिंदा वापस नहीं आता।
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